Thursday, December 30, 2010

Breakup

Here lays my heart
All broken and torn
There are no feelings left in it
For me to mourn
Here lays my mind
Which has repressed
All the memories we have shared
That have left me a mess
Here lays my soul
Which you took away
Along with my faith and trust in you
That you broke in a day
Here lays my body
All mangled and left to die
I hope that I can get through this
And find another guy

Sunday, December 12, 2010

Kya Baat Hai!!!



kitabo ke panno ko palat ke sochta hoon,
yu palat jaye meri zindgi to kya baat hai,
khwabon me roj milti hai jo hakikat mein aye to kya bat hai,
kuch matlab ke liye dhundhte hai mujhko,
bin matlab jo aye to kya baat hai,
katal kar ke to sab le jayenge dil,
mera koi baton se le jaye to kya baat hai,
jo sharifon ki sharafat mein baat na ho,
ek sharabi keh jaye to kya baat hai,
apne rehne tak to khushi dunga sab ko,
jo kisi ko meri maut pe khushi mil jaye to kya baat hai.

Tuesday, December 7, 2010

use kah do mujhe satana chhod de..!!!

use kah do mujhe satana chhod de,
dusron ke saath reh kar har pal mujhe jalana chhod de.
ya to kar de inkaar mujhese mohabbat nahi,
ya guzarte huye dekh mujhe palat kar muskurana chhod de,
na kar baat mujh se koi gam nahi hai,
yu sun kar aawaz meri jharonkhe pe aana chhod de,
kar de dil-e-bayaan jo chhupa rakha hai,
yu isharon mai haal batana chhod de,
kya iraada hai bata de ab mujhe,
yu doston ko mere kisse sunana chhod de,
hai pasand mujh ko jo libaas tera,
us libaas mai baar-baar aana chhod de,
na kar yaad mujhe beshaq tu,
kitabon pe naam likh kar mitana chhod de..?
use kah do mujhe satana chhod de..!!!

Friday, October 22, 2010

Aaj na jane kyu rone ka man kiya???


Aaj na jane kyu rone ka man kiya,
Maa ke anchal me sir rakh kar sone ka man kiya.
Duniya ki bhag daud me kho chuke the rishtey sab,
Aaj kyun un sare rishton ko ek sire se sanjone ka man kiya.
Kisi din bhid me dekhi thi kisi ki ankhen,
Aaj phir un aankhon me khone ka man kiya.
Roj sapno se baatein karta tha mai,
Aaj na jane kyu unse muh modne ka man kiya.
Jhut bolta hu apne aap se roz mai aaj,


Na jane kyu khud se ek such bolne ka man kiya.
Dil todta hu sabka apni baton se mai,
Aaj na jane kyu ek tute hua dil jodne ka man kiya.
Na jane kyun aaj rone ka man kiya???

Friday, July 16, 2010

A Box Full of Kisses

The story goes that some time ago, a man punished his 3-year-old daughter for wasting a roll of gold wrapping paper. Money was tight and he became infuriated when the child tried to decorate a box to put under the Christmas tree. Nevertheless, the little girl brought the gift to her father the next morning and said, "This is for you, Daddy." The man was embarrassed by his earlier overreaction, but his anger flared again when he found out the box was empty. He yelled at her, stating, "Don't you know, when you give someone a present, there is supposed to be something inside? The little girl looked up at him with tears in her eyes and cried, "Oh, Daddy, it's not empty at all. I blew kisses into the box. They're all for you, Daddy."The father was crushed. He put his arms around his little girl, and he begged for her forgiveness. Only a short time later, an accident took the life of the child. It is also told that her father kept that gold box by his bed for many years and, whenever he was discouraged, he would take out an imaginary kiss and remember the love of the child who had put it there.
In a very real sense, each one of us, as humans beings, have been given a gold container filled with unconditional love and kisses... from our children, family members, friends, and God. There is simply no other possession, anyone could hold, more precious than this.

Sand and Stone



A story tells that two friends were walking through the desert. During some point of the journey they had an argument, and one friend slapped the other one in the face. The one who got slapped was hurt, but without saying anything, wrote in the sand: "TODAY MY BEST FRIEND SLAPPED ME IN THE FACE."
They kept on walking until they found an oasis, where they decided to take a bath. The one, who had been slapped, got stuck in the mire and started drowning, but the friend saved him. After the friend recovered from the near drowning, he wrote on a stone: "TODAY MY BEST FRIEND SAVED MY LIFE."
The friend who had slapped and saved his best friend asked him, "After I hurt you, you wrote in the sand and now, you write on a stone, why?"
The other friend replied: "When someone hurts us, we should write it down in sand where winds of forgiveness can erase it away. But, when someone does something good for us, we must engrave it in stone where no wind can ever erase it."
LEARN TO WRITE YOUR HURTS IN THE SAND, AND TO CARVE YOUR BENEFITS IN STONE

Wednesday, July 14, 2010

क्या पत्रकार होना गुनाह है?


कुछ प्रश्न बार बार मन में उथल-पुथल मचाये हुए है। जबाब ढुढने पर भी नहीं मिल रहा। पत्रकारिता को समाज सेवा और देशभक्ति का प्रतीक माना जाना अब बन्द हो गया है। अपवादों को छोड़ दे तो पत्रकार का मतलब लंपट, दारूबाज, ब्लैकमेलर और न जाने क्या क्या हो गया है पर क्या वास्तव में ऐसा ही है। हम जिस आवाम के लिए जिम्मेवार है उनकी नज़र में भी हमारी छवि खराब हो चुकी है।
कुछ बात है जो उद्वेलित कर रही है। आखिर पत्रकारिता बदनाम हो चुका है या ``बद´´, यह सबसे बड़ा सवाल है।
सबसे पहले तो यह कि आज जब कहीं किसी पत्रकार की हत्या होती है या फिर उनके साथ मार पीट होती है तब मिडिया खामोश रहती है या फिर औपचारिकता पूरी करती है। एक माडल की हत्या पर चिल्लाने वाली मिडिया आखिर क्यों अपने साथी की मौत पर चुप रहती है कोई तो कारण हो । गांव में कहावत है की कुत्ता भी कुत्ते की मौत पर रोता है पर हमें क्या हुआ है। क्या हम इतने बुरे है। यानि अपने भी हमें बुरा ही मानते है।
इसको लेकर मैं अपना कुछ अनुभव बांटना चाहता हूं चूंकी मैं भी मिडिया जगत का एक अदना सिपाही हूं और हमें भी यह सब देख कर दर्द होता है।
मैं अभी हाल में ही अपने यहां हुए लूट और दो भाईयों को गोली मारे जाने की घटना का जिक्र करना चाहूंगा। सात जुलाई को करीब नौ बजे इस घटना की खबर मिलती है और एक मिनट में मैं अपने एक साथी दीपक के साथ आनन फानन में कैमरा लेकर घटनास्थल की ओर भागा और बिना यह जानेे की अपराधी घटनास्थल से भाग गए हैं या नहीं, मैं वहां पहूंच गया। वह जगह नगर की एक सुनसान गली थी और धुप्प अंधेरा भी था पर किसी बात की परवाह उस समय नहीं थी। लगा जैसे खुन में जुनून सा दौर गया हो, प्रलय आने की तरह। सबसे पहले चैनल को फोन पर घटना की खबर दी उसके बाद घटना स्थल पर कवरेज करने लगा। खुन के छिंटे, गोलियों का खोखा.... । सब कुछ कवर करने के बाद भागते हुए अस्पताल, फिर पिड़ित का घर। इतना सबकुछ करते करते करीब 11 बज गए। सुनसान बाजार पर मैं अपने कार्यालय में बैठा विजुअल कैपचर करने लगा और उसे भेजने के लिए एफटीपी पर डाल दिया। हमारे यहां ब्राडबैण्ड नहीं है इस लिए रिम के मॉडम से भेजने में समय अधिक लगता है। 12 बजे हमारे एक मित्र ने विजुअल की मांग की और हमलोग एक दुसरे से विजुअल का अदान-प्रदान करते रहते है सो मैं देने के लिए तैयार हो गया और वह मेरे यहां से 20 किलोमिटर दूर होने के बाद भी रात में ही विजुअल लेने आ गया।
चार साल पहले के पंचायत चुनाव का जिक्र भी मैं यहां करना चाहूंगा। चुनाव के दिन हमलोगों के लिए चुनौती का दिन होता है। उस समय मैं सिर्फ अखबार के लिए ही काम करता था। बरबीघा का तेउस पंचायत में बड़ी घटना के घटने की संभावना प्रबल थी क्योंकि यहां से अपराधी सरगना और मोकामा विधायक अनन्त सिंह के मनेरे भाई त्रिशुलधारी सिंह तथा उनके रिश्तेदार चुनाव लड़ रहे थे और पिछले चुनाव में अनन्त सिंह ने पुुरा गांव में घेर कर बुथ लुट लिया था। उनका मुकाबल कुख्यात शूटर नागा सिंह के साले शंभू सिंह से था जिनकी पत्नी चुनाव मैदान में थी। हमलोग बिना इसकी परवाह किए सबसे पहले सुदूर काशीबीघा गांव पहूंच गए जहां हंगामें की सबसे ज्यादा संभावना थी। हमलोग जैसे ही बुथ पर पहूंचे वहां बूथ लूटने का काम हो रहा था। मेरे साथ ईटीवी रिपोर्टर अजीत थे। हमलोगों के पहूंचने से पहले ही वे लोग भाग खड़े हुए और पुलिस कें जवान लोगों को लाइन में लगाने का काम करने लगे। हमलोगों ने बिना भय के विजुअल बनाया और फोटो खिंची। तभी वहां त्रिशुलधारी सिंह का बेटा राजीव आया और धमकी भरे लहजे में यह सब नहीं करने की सलाह दी। पर वही जुनून हमलोग कहां रूकने वाले थे। दिन भर चिलचिलाती धूप में हमलोग मोटरसाईकिल पर धुमते रहे। आज भी याद है उस दिन जब मैं घर पहूंचा पत्नी चैंककर पुछती है क्या हुआ चेहरा काला हो गया है तब मैंं धूप की वजह से मेरा चेहरा और हाथ पूरी तरह सेे काला हो गया था। खैर दो बजे के आस पास हम लोग न्यूज और फोटो पहूंचाने के लिए तीस किलोमिटर दूर नालन्दा जिला के बिहारशरीफ जा रहा था कि सबसे पहले मुझे ही यह खबर मिलती है कि गोवाचक में नरसंहार हो गया है और करीब सात लोग मारे गए है। लगा जैसे खून में उबाल आ गया। तत्काल हमलोग गोवाचक की ओर भागे। नजारा देख कलेजा मुंह में आ गया। फिर पुलिस को इसकी सूचना दी और अपने साथियों को भी दी। पता नही दरिन्दगी के उस मंजर को कैसे कवर किया। भूखे प्यसे और बदहवास। न्यूज कवर कर बिहारशरीफ गया वहां से न्यूज लगाने के बाद फिर गोवाचक आए और रात में 11 बजे घर लौटा।
कई बाकया ऐसा है जो रोज रोज होता है, क्या क्या लिखूं, उबाउ हो जाएगा।
पर ऐसा सिर्फ मेरे साथ ही नहीं होता मेरे साथी भी ऐसा ही करते है और हां एक बात मैं कह दूं की यह सब मैं कम से कम मैं पैसों के लिए नहीं था क्यूंकि तब मैं ``आज´´ अखबार के लिए रिर्पोटिंग करता था उसमें पत्रकारों को फैक्स तक का खर्चा नहीं दिया जाता और मैं दाबे से कह सकता हूं कि आठ साल के पत्रकारिता के लाइफ मे एक आदमी उंगली उठाकर नहीं कह सकता कि मैंने पत्रकारिता के नाम पर पैसे लिए हों।
तब सोंचता हूं कि हमलोग ऐसा क्यों करते है। यह जुनून किस लिए। क्या मिलता है।
जान को जोखिम में डाल अपने और अपने बच्चों के भविष्य को दांव पर लगा कर पत्रकारिता के नाम पर इस जुनून से क्या मिल रहा है।
बस कुलदीप नैयर के आलेख में उद्धिZत उस वाक्य से हौसला मिलता है जिसमे उन्होंने कहा था कि `` पत्रकारिता पेशा नहीं है और यह पैसा कमाने का माध्यम भी नहीं, यह देशसेवा है, देशप्रेम है, समाजसेवा है। पैसा कमाना हो तो कोई और माध्यम चुनों पत्रकारिता क्यों।.......
...बस एक दर्द था जिसे उगल दिया है ................................

Thursday, May 20, 2010

ओम (ॐ) या ओंकार


ओम (ॐ) या ओंकार का नामांतर प्रणव है। यह ईश्वर का वाचक है। ईश्वर के साथ ओंकार का वाच्य-वाचक-भाव संबंध नित्य है, सांकेतिक नहीं। संकेत नित्य या स्वाभाविक संबंध को प्रकट करता है। सृष्टि के आदि में सर्वप्रथम ओंकाररूपी प्रणव का ही स्फुरण होता है। तदनंतर सात करोड़ मंत्रों का आविर्भाव होता है। इन मंत्रों के वाच्य आत्मा की देवता रूप से प्रसिद्धि है। ये देवता माया के ऊपर विद्यमान रहकर मायिक सृष्टि का नियंत्रण करते हैं। इनमें से आधे शुद्ध मायाजगत् में कार्य करते हैं और शेष आधे अशुद्ध या मलिन मायिक जगत् में।
परिचय
ब्रह्मप्राप्ति के लिए निर्दिष्ट विभिन्न साधनों में प्रणवोपासना मुख्य है। मुंडकोपनिषत् में लिखा है:
प्रणवो धनु: शरो ह्यात्मा ब्रह्म तल्लक्ष्यमुच्यते।
अप्रमत्तेन वेद्धव्यं शरवत्तन्मयो भवेत्।।
कठोपनिषत् में यह भी लिखा है कि आत्मा को अधर अरणि और ओंकार को उत्तर अरणि बनाकर मंथनरूप अभ्यास करने से दिव्य ज्ञानरूप ज्योति का आविर्भाव होता है। उसके आलोक से निगूढ़ आत्मतत्वका साक्षात्कार होता है। श्रीमद्भगवद्गीता में भी ओंकार को एकाक्षर ब्रह्म कहा है। मांडूक्योपनिषत् में भूत, भवत् या वर्तमान और भविष्य–त्रिकाल–ओंकारात्मक ही कहा गया है। यहाँ त्रिकाल से अतीत तत्व भी ओंकार ही कहा गया है। आत्मा अक्षर की दृष्टि से ओंकार है और मात्रा की दृष्टि से अ, उ और म रूप है। चतुर्थ पाद में मात्रा नहीं है एवं वह व्यवहार से अतीत तथा प्रपंच शून्य अद्वैत है। इसका अभिप्राय यह है कि ओंकारात्मक शब्द ब्रह्म और उससे अतीत परब्रह्म दोनों अभिन्न तत्व हैं।
वैदिक वाङमय के सदृश धर्मशास्त्र, पुराण तथा आगम साहित्य में भी ओंकार की महिमा सर्वत्र पाई जाती है। इसी प्रकार बौद्ध तथा जैन संप्रदाय में भी सर्वत्र ओंकार के प्रति श्रद्धा की अभिव्यक्ति देखी जाती है। प्रणव शब्द का अर्थ है–प्रकर्षेण नूयते स्तूयते अनेन इति, नौति स्तौति इति वा प्रणव:।
प्रणव का बोध कराने के लिए उसका विश्लेषण आवश्यक है। यहाँ प्रसिद्ध आगमों की प्रक्रिया के अनुसार विश्लेषण क्रिया का कुछ दिग्दर्शन कराया जाता है। ओंकार के अवयवों का नाम है–अ, उ, म, विंदु अर्धचंद्र रोधिनी, नाद, नादांत, शक्ति, व्यापिनी या महाशून्य, समना तथा उन्मना। इनमें से अकार, उकार और मकार ये तीन सृष्टि, स्थिति और संहार के सपादक ब्रह्मा, विष्णु तथा रुद्र के वाचक हैं। प्रकारांतर से ये जाग्रत्, स्वप्न और सुषुप्ति तथा स्थूल, सूक्ष्म और कारण अवस्थाओं के भी वाचक हैं। विंदु तुरीय दशा का द्योतक है। प्लुत तथा दीर्घ मात्राओं का स्थितिकाल क्रमश: संक्षिप्त होकर अंत में एक मात्रा में पर्यवसित हो जाता है। यह ह्रस्व स्वर का उच्चारण काल माना जाता है। इसी एक मात्रा पर समग्र विश्व प्रतिष्ठित है। विक्षिप्त भूमि से एकाग्र भूमि में पहुँचने पर प्रणव की इसी एक मात्रा में स्थिति होती है। एकाग्र से निरोध अवस्था में जाने के लिए इस एम मात्रा का भी भेद कर अर्धमात्रा में प्रविष्ट हुआ जाता है। तदुपरांत क्रमश: सूक्ष्म और सूक्ष्मतर मात्राओं का भेद करना पड़ता है। विंदु अर्धमात्रा है। उसके अनंतर प्रत्येक स्तर में मात्राओं का विभाग है। समना भूमि में जाने के बाद मात्राएँ इतनी सूक्ष्म हो जाती हैं कि किसी योगी अथवा योगीश्वरों के लिए उसके आगे बढ़वा संभव नहीं होता, अर्थात् वहाँ की मात्रा वास्तव में अविभाज्य हो जाती है। आचार्यो का उपदेश है कि इसी स्थान में मात्राओं को समर्पित कर अमात्र भूमि में प्रवेश करना चाहिए। इसका थोड़ा सा आभास मांडूक्य उपनिषद् में मिलता है।
विंदु मन का ही रूप है। मात्राविभाग के साथ-साथ मन अधिकाधिक सूक्ष्म होता जाता है। अमात्र भूमि में मन, काल, कलना, देवता और प्रपंच, ये कुछ भी नहीं रहते। इसी को उन्मनी स्थिति कहते हैं। वहाँ स्वयंप्रकाश ब्रह्म निरंतर प्रकाशमान रहता है।
योगी संप्रदाय में स्वच्छंद तंत्र के अनुसार ओंकारसाधना का एक क्रम प्रचलित है। उसके अनुसार "अ" समग्र स्थूल जगत् का द्योतक है और उसके ऊपर स्थित कारणजगत् का वाचक है मकार। कारण सलिल में विधृत, स्थूल आदि तीन जगतों के प्रतीक अ, उ और म हैं। ऊर्ध्व गति के प्रभाव से शब्दमात्राओं का मकार में लय हो जाता है। तदनंतर मात्रातीत की ओर गति होती है। म पर्यत गति को अनुस्वार गति कहते हैं। अनुस्वार की प्रतिष्ठा अर्धमात्रा में विसर्गरूप में होती है। इतना होने पर मात्रातीत में जाने के लिए द्वार खुल जाता है। वस्तुत: अमात्र की गति बिंदु से ही प्रारंभ हो जाती है। तंत्र शास्त्र में इस प्रकार का मात्राविभाग नौ नादों की सूक्ष्म योगभूमियां के नाम से प्रसिद्ध है। इस प्रसंग में यह स्मरणीय है कि बिंदु अशेष वेद्यों के अभेद ज्ञान का ही नाम है ओर नाद अशेष वाचकों के विमर्शन का नाम है। इसका तात्पर्य यह है कि अ, उ और म प्रणव के इन तीन अवयवों का अतिक्रमण करने पर अर्थतत्व का अवश्य ही भेद हो जाता है। उसका कारण यह है कि यहाँ योगी को सब पदार्थो के ज्ञान के लिए सर्वज्ञत्व प्राप्त हो जाता है एवं उसके बाद बिंदुभेद करने पर वह उस ज्ञान का भी अतिक्रमण कर लेता है। अर्थ और ज्ञान इन दोनों के ऊपर केवल नाद ही अवशिष्ट रहता है एवं नाद की नादांत तक की गति में नाद का भी भेद हो जाता है। उस समय केवल कला या शक्ति ही विद्यमान रहती है। जहाँ शक्ति या चित् शक्ति प्राप्त हो गई वहाँ ब्रह्म का प्रकाशमान होना स्वत: ही सिद्ध है। इस प्रकार प्रणव के सूक्ष्म उच्चारण द्वारा विश्व का भेद होने पर विश्वातीत तक सत्ता की प्राप्ति हो जाती है। स्वच्छंद तंत्र में यह दिखाया गया है कि ऊर्ध्व गति में किस प्रकार कारणों का परित्याग होते होते अखंड पूर्णतत्व में स्थिति हो जाती है। "अ" ब्रह्मा का वाचक है; उच्चारण द्वारा हृदय में उसका त्याग होता है। "उ" विष्णु का वाचक हैं; उसका त्याग कंठ में होता है तथा "म" रुद्र का वाचक है ओर उसका त्याग तालुमध्य में होता है। इसी प्रणाली से ब्रह्मग्रंथि, विष्णुग्रंथि तथा रुद्रग्रंथि का छेदन हो जाता है। तदनंतर बिंदु है, जो स्वयं ईश्वर रूप है अर्थात् बिंदु से क्रमश: ऊपर की ओर वाच्यवाचक का भेद नहीं रहता। भ्रूमध्य में बिंदु का त्याग होता है। नाद सदाशिवरूपी है। ललाट से मूर्धा तक के स्थान में उसका त्याग करना पड़ता है। यहाँ तक का अनुभव स्थूल है। इसके आगे शक्ति का व्यापिनी तथा समना भूमियों में सूक्ष्म अनुभव होने लगता है। इस भूमि के वाच्य शिव हैं, जो सदाशिव से ऊपर तथा परमशिव से नीचे रहते हैं। मूर्धा के ऊपर स्पर्शनुभूति के अनंतर शक्ति का भी त्याग हो जाता है एवं उसके ऊपर व्यापिनी का भी त्याग हो जाता है। उस समय केवल मनन मात्र रूप का अनुभव होता है। यह समना भूमि का परिचय है। इसके बाद ही मनन का त्याग हो जाता है। इसके उपरांत कुछ समय तक मन के अतीत विशुद्ध आत्मस्वरूप की झलक दीख पड़ती है। इसके अनंतर ही परमानुग्रहप्राप्त योगी का उन्मना शक्ति में प्रवेश होता है। इसी को परमपद या परमशिव की प्राप्ति समझना चाहिए और इसी को एक प्रकार से उन्मना का त्याग भी माना जा सकता है। इस प्रकार ब्रह्मा से शिव पर्यत छह कारणों का उल्लंघन हो जाने पर अखंड परिपूर्ण सत्ता में स्थिति हो जाती है।

पौराणिक कथाएँ – भूमिका


पौराणिक कथाओं को पढ़कर यदि ऐसा लगे कि ये सब ऊल-जुलूल बातें हैं तो आश्चर्य की बात नहीं है। ऐसा लगना स्वाभाविक है। पुराणों के सम्बंध कहा जाता है कि वेद में निहित ज्ञान के अत्यन्त गूढ़ होने के कारण आम आदमियों के द्वारा उन्हें समझना बहुत कठिन था, इसलिये रोचक कथाओं के माध्यम से वेद के ज्ञान की जानकारी देने की प्रथा चली। इन्हीं कथाओं के संकलन को पुराण कहा जाता हैं। पौराणिक कथाओं में ज्ञान, सत्य घटनाओं तथा कल्पना का संमिश्रण होता है। पुराण ज्ञानयुक्त कहानियों का एक विशाल संग्रह होता है। पुराणों को वर्तमान युग में रचित विज्ञान कथाओं (scince fictions) के जैसा ही समझा जा सकता है।
किन्तु देखा जाये तो पौराणिक कथाओं में कल्पना या यह कहें कि कपोल कल्पना आवश्यकता से अधिक है जो कि इन कथाओं को अतिरंजित बना देती हैं। कल्पना का आवश्यकता से अधिक होने का कारण शायद यह हो सकता है कि ये कथाएँ प्राचीन काल से चली आ रही हैं और समय समय पर अनेक लोगों ने इन कथाओं में अपने-अपने हिसाब से परिवर्तन कर दिया है। इन कथाओं की रचना के समय इनका उद्देश्य अवश्य ही कहानी के रूप में सत्य घटनाओं तथा ज्ञान की बातो को बताना रहा होगा किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि कालान्तर में केवल मनोरंजन ही इन कथाओं का मुख्य उद्देश्य बन कर रह गया।
इतना सब कुछ होने के बाद भी यदि इन कथाओं का विश्लेषण किया जाये तो कुछ न कुछ जानकारी अवश्य ही प्राप्त हो सकती है। इन कथाओं में अधिकतर बातें प्रतीक रूप में हैं जैसे कि श्रीमद्भागवत् पुराण की कथा में वर्णित हैः
“भूलोक तथा द्युलोक के मध्य में अन्तरिक्ष लोक है। इस द्युलोक में सूर्य भगवान नक्षत्र तारों के मध्य में विराजमान रह कर तीनों लोकों को प्रकाशित करते हैं। उत्तरायण, दक्षिणायन तथा विषुक्त नामक तीन मार्गों से चलने के कारण कर्क, मकर तथा समान गतियों के छोटे, बड़े तथा समान दिन रात्रि बनाते हैं। जब भगवान सूर्य मेष तथा तुला राशि पर रहते हैं तब दिन रात्रि समान रहते हैं। जब वे वृष, मिथुन, कर्क, सिंह और कन्या राशियों में रहते हैं तब क्रमशः रात्रि एक-एक मास में एक-एक घड़ी बढ़ती जाती है और दिन घटते जाते हैं। जब सूर्य वृश्चिक, मकर, कुम्भ, मीन ओर मेष राशि में रहते हैं तब क्रमशः दिन प्रति मास एक-एक घड़ी बढ़ता जाता है तथा रात्रि कम होती जाती है। सूर्य का रथ एक मुहूर्त (दो घड़ी) में चौंतीस लाख आठ सौ योजन चलता है। इस रथ का संवत्सर नाम का एक पहिया है जिसके बारह अरे (मास), छः नेम, छः ऋतु और तीन चौमासे हैं।”
इतना सब कुछ होने के बाद भी यदि इन कथाओं का विश्लेषण किया जाये तो कुछ न कुछ जानकारी अवश्य ही प्राप्त हो सकती है। इन कथाओं में अधिकतर बातें प्रतीक रूप में हैं जैसे कि श्रीमद्भागवत् पुराण की कथा में वर्णित हैः
“भूलोक तथा द्युलोक के मध्य में अन्तरिक्ष लोक है। इस द्युलोक में सूर्य भगवान नक्षत्र तारों के मध्य में विराजमान रह कर तीनों लोकों को प्रकाशित करते हैं। उत्तरायण, दक्षिणायन तथा विषुक्त नामक तीन मार्गों से चलने के कारण कर्क, मकर तथा समान गतियों के छोटे, बड़े तथा समान दिन रात्रि बनाते हैं। जब भगवान सूर्य मेष तथा तुला राशि पर रहते हैं तब दिन रात्रि समान रहते हैं। जब वे वृष, मिथुन, कर्क, सिंह और कन्या राशियों में रहते हैं तब क्रमशः रात्रि एक-एक मास में एक-एक घड़ी बढ़ती जाती है और दिन घटते जाते हैं। जब सूर्य वृश्चिक, मकर, कुम्भ, मीन ओर मेष राशि में रहते हैं तब क्रमशः दिन प्रति मास एक-एक घड़ी बढ़ता जाता है तथा रात्रि कम होती जाती है। सूर्य का रथ एक मुहूर्त (दो घड़ी) में चौंतीस लाख आठ सौ योजन चलता है। इस रथ का संवत्सर नाम का एक पहिया है जिसके बारह अरे (मास), छः नेम, छः ऋतु और तीन चौमासे हैं।”

अक्षय तृतीया


मान्यता है कि वैशाख मास के शुक्ल पक्ष तृतीया के दिन किये गये किसी भी शुभ कार्य का अक्षय फल मिलता है इसीलिये इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है।
अक्षय तृतीया के दिन शुभ कार्य करने के लिये मुहूर्त नहीं देखा जाता क्योंकि यह तिथि ही स्वयंसिद्ध मुहूर्त है। इस दिन विवाह, गृह-प्रवेश, वस्त्र-आभूषणों या जमीन-जायजाद, वाहन आदि की खरीददारी जैसे किसी भी मांगलिक कार्य करने के लिये पंचांग में शुभ मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं होती।
अक्षय तृतीया के दिन से ही वर विवाह करने का आरम्भ होता है। भारतवर्ष के अनेक क्षेत्रों में इस दिन गुड्डे गुड्डियों के विवाह रचाने का चलन है।
भविष्य पुराण के अनुसार सतयुग और त्रेतायुग का आरम्भ अक्षय तृतीया के दिन से ही हुआ था।
भगवान परशुराम का जन्म अक्षय तृतीया के दिन ही हुआ था।
भारत के प्रमुख तीर्थ बद्रीनाथ तथा केदारनाथ के कपाट इसी दिन से खोले जाते हैं।
अक्षय तृतीया के दिन ही महाभारत के युद्ध का समापन हुआ था।
छ्तीसगढ़ में अक्षय तृतीया को ‘अकती’ त्यौहार के रूप में मनाते हैं। इसी दिन से खेती-किसानी का वर्ष प्रारम्भ होता है। इसी दिन पूरे वर्ष भर के लिये नौकर लगाये जाते हैं। शाम के समय हर घर की कुँआरी लड़कियाँ आँगन में मण्डप गाड़कर गुड्डे-गुड्डियों का ब्याह रचाती हैं।

Mahabharata, The Greatest Indian Epic



महाभारत हिन्दुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मति वर्ग में आता है। कभी कभी केवल "भारत" कहा जाने वाला यह काव्यग्रंथ भारत का अनुपम धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ हैं। विश्व का सबसे लंबा यह साहित्यिक ग्रंथ और महाकाव्य, हिन्दू धर्म के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है। इस ग्रन्थ को हिन्दू धर्म में पंचम वेद माना जाता है।यद्यपि इसे साहित्य की सबसे अनुपम कृतियों में से एक माना जाता है, किन्तु आज भी यह प्रत्येक भारतीय के लिये एक अनुकरणीय स्रोत है। यह कृति प्राचीन भारत के इतिहास की एक गाथा है। इसी में हिन्दू धर्म का पवित्रतम ग्रंथ भगवद्गीता सन्निहित है। पूरे महाभारत में लगभग १,१०,००० श्लोक हैं जो यूनानी काव्यों इलियड और ओडिसी से परिमाण में दस गुणा अधिक हैं।
इस काव्य के रचयिता वेदव्यास जी ने अपने इस अनुपम काव्य में वेदों, वेदांगों और उपनिषदों के गुह्यतम रहस्यों का निरुपण किया हैं। इसके अतिरिक्त इस काव्य में न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, ज्योतिष, युद्धनीति, योगशास्त्र, अर्थशास्त्र, वास्तुशास्त्र, शिल्पशास्त्र, कामशास्त्र, खगोलविद्या तथा धर्मशास्त्र का भी विस्तार से वर्णन किया गया हैं।

Wednesday, May 19, 2010

रामायण सार



रामायण कवि वाल्मीकि द्वारा लिखा गया संस्कृत का एक अनुपम महाकाव्य है। इसके २४,००० श्लोक हिन्दू स्मृति का वह अंग हैं जिसके माध्यम से रघुवंश के राजा राम की गाथा कही गयी। इसे आदिकाव्य भी कहा जाता है।
कुछ भारतीय विद्वान कहते हैं कि यह ६०० ईपू से पहले लिखा गया।उसके पीछे युक्ति यह है कि महाभारत जो इसके पश्चात आया बौद्ध धर्म के बारे में मौन है यद्यपि उसमें जैन, शैव, पाशुपत आदि अन्य परम्पराओं का वर्णन है। अतः रामायण गौतम बुद्ध के काल के पूर्व का होना चाहिये। भाषा शैली से भी यह पाणिनि के समय से पहले का होना चाहिये। रामायण के सात अध्याय हैं जो काण्ड के नाम से जाने जाते हैं।



रामायण का पहला और अन्तिम कांड संभवत: बाद में जोड़ा गया था। अध्याय दो से सात तक ज्यादातर इस बात पर बल दिया जाता है कि राम विष्णु के अवतार थे। कुछ लोगों के अनुसार इस महाकाव्य में यूनानी और कई अन्य संदर्भों से पता चलता है कि यह पुस्तक दूसरी सदी ईसा पूर्व से पहले की नहीं हो सकती पर यह धारणा विवादस्पद है। ६०० ईपू से पहले का समय इसलिये भी ठीक है कि बौद्ध जातक रामायण के पात्रों का वर्णन करते हैं जबकि रामायण में जातक के चरित्रों का वर्णन नहीं है।

तुलसीदास जी के अनुसार सर्वप्रथम श्री राम की कथा भगवान श्री शंकर ने माता पार्वती जी को सुनाया था। जहाँ पर भगवान शंकर पार्वती जी को भगवान श्री राम की कथा सुना रहे थे वहाँ कागा (कौवा) का एक घोसला था और उसके भीतर बैठा कागा भी उस कथा को सुन रहा था। कथा पूरी होने के पहले ही माता पार्वती को ऊँघ आ गई पर उस पक्षी ने पूरी कथा सुन ली। उसी पक्षी का पुनर्जन्म काकभुशुण्डि के रूप में हुआ। काकभुशुण्डि जी ने यह कथा गरुड़ जी को सुनाई। भगवान श्री शंकर के मुख से निकली श्रीराम की यह पवित्र कथा अध्यात्म रामायण के नाम से प्रख्यात है। अध्यात्म रामायण को ही विश्व का सर्वप्रथम रामायण माना जाता है।
हृदय परिवर्तन हो जाने के कारण एक दस्यु से ऋषि बन जाने तथा ज्ञानप्राप्ति के बाद वाल्मीकि ने भगवान श्री राम के इसी वृतान्त को पुनः श्लोकबद्ध किया। महर्षि वाल्मीकि के द्वारा श्लोकबद्ध भगवान श्री राम की कथा को वाल्मीकि रामायण के नाम से जाना जाता है। वाल्मीकि को आदिकवि कहा जाता है तथा वाल्मीकि रामायण को आदि रामायण के नाम से भी जाना जाता है।
देश में विदेशियों की सत्ता हो जाने के बाद देव भाषा संस्कृत का ह्रास हो गया और भारतीय लोग उचित ज्ञान के अभाव तथा विदेशी सत्ता के प्रभाव के कारण अपनी ही संस्कृति को भूलने लग गये। ऐसी स्थिति को अत्यन्त विकट जानकर जनजागरण के लिये महाज्ञानी सन्त श्री तुलसीदास जी ने एक बार फिर से भगवान श्री राम की पवित्र कथा को देसी भाषा में लिपिबद्ध किया। सन्त तुलसीदास जी ने अपने द्वारा लिखित भगवान श्री राम की कल्याणकारी कथा से परिपूर्ण इस ग्रंथ का नाम रामचरितमानस रखा। सामान्य रूप से रामचरितमानस को तुलसी रामायण के नाम से जाना जाता है।
कालान्तर में भगवान श्री राम की कथा को अनेक विद्वानों ने अपने अपने बुद्धि, ज्ञान तथा मतानुसार अनेक बार लिखा है। इस तरह से अनेकों रामायणों की रचनाएँ हुई हैं।

BHAGAVAD GITA SUMMARY in Hindi


क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सक्ता है? अात्मा ना पैदा होती है, न मरती है।
जो हुअा, वह अच्छा हुअा, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है, जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप न करो। भविष्य की चिन्ता न करो। वर्तमान चल रहा है।
तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर अाए, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया, यहीं पर दिया। जो लिया, इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया।
खाली हाथ अाए अौर खाली हाथ चले। जो अाज तुम्हारा है, कल अौर किसी का था, परसों किसी अौर का होगा। तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो। बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दु:खों का कारण है।
परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो।
न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, अाकाश से बना है अौर इसी में मिल जायेगा। परन्तु अात्मा स्थिर है - फिर तुम क्या हो?
तुम अपने अापको भगवान के अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारे को जानता है वह भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त है।
जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान के अर्पण करता चल। ऐसा करने से सदा जीवन-मुक्त का अानंन्द अनुभव करेगा।

Saturday, February 13, 2010

मैं शिखर पर हूँ




घाटियों में खोजिए मत


मैं शिखर पर हूँ
धुएँ की पगडंडियों को


बहुत पीछे छोड़ आया


हूँरोशनी के राजपथ पर


गीत का रथ मोड़ आया हूँ


मैं नहीं भटकारहा चलता निरंतर हूँ।
लाल-पीली उठीं लपटें


लग रही है आग जंगल में


आरियाँ उगने लगी हैं


आम , बरगद, और पीपल में


मैं झुलसती रेत पर


रसवंत निर्झर हूँ
साँझ ढलते पश्चिमी नभ के


जलधि में डूब जाऊँगा सूर्य हूँ


मैं जुगनुओं कीचित्र लिपि में जगमगाऊँगा अनकही


अभिव्यक्ति का मैं स्वर अनश्वर हूँ

Friday, February 12, 2010

मुझे कुछ करना है ।


करना है तो करना है,
बढ़ना है, भिड़ना है, अड़ना पड़े तो अड़ना है,
करना है तो करना है,
गिरना है फिर सम्भलना है,
कुछ कर गुज़रना है, यही तमन्ना है,
करना है तो करना है,
धड़कना है, गरजना है, बरसना है
लड़ना पड़े तो लड़ना है,
करना है तो करना है,
करना है तो करना है,
क्या नहीं हो सकता अगर आदमी ठान ले तो,
अगर सोच ले तो कि करना है तो करना है,
फिर कोई सागर गहरा नहीं,
कोई पर्वत ऊंचा नहीं,
कोई चुनौती बड़ी नहीं,
यही जज़्बा, यही मिज़ाज,
यही सोच लेकर आया है,
हर ख़बर की तह तक जाने का जज़्बा,
उसे हर क़ीमत पर पहुंचाने का जज़्बा,
क्योंकि......करना है तो करना है !

वेलेंटाइन डे और ये महंगाई




इन दिनों बाजार जाकर काफी शुकून मिल रहा हैं , ऐसा लगता है मानों कि किसी बगीचे में आ गये हों , चारों ओर गुलाबी खुशबू फैली है । तरह तरह से सजे गुलाब के गुलदस्तों को देख प्रसन्नता होती है , वैसे तो आम दिनों में इन गुलाबों की कीमत पांच रूपये के आस पास होती है पर इस खास मौके पर ये ३० रूपये से लेकर १००० रूपये तक के हैं । महंगाई ने पहले ही दाल रोटी को हमसे दूर कर दिया है ऐसे में भला गुलशन में गुलाब कैसे गुलजार हो सकता है।

बुजुर्गो के लिए 'बेशर्मी' से बढ़कर कुछ नहीं है वैलेंटाइन डे

वैलेंटाइन डे को चाहे प्रेम का दिन कहा जाए या फिर कुछ और, लेकिन बुजुर्ग इसे 'बेशर्मी' का दिन मानते हैं। उनका कहना है कि देश की नौजवान पीढ़ी इससे ''बर्बाद'' हो रही है, लेकिन युवा इससे बिल्कुल सहमत नहीं हैं और उनका मानना है कि समय के साथ बदलना चाहिए।
दिल्ली के एक सरकारी स्कूल से बतौर प्रधानाचार्य सेवानिवृत्त 70 वर्षीय रमेश कुमार का कहना है कि वैलेंटाइन डे का नाम भी 'बेहूदा' है और यह 'बेशर्मी' का दिन है।उन्होंने कहा कि प्यार का मतलब सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शन करना नहीं है और न ही इसका मतलब यह है कि इस दिन घरवालों को धोखा देकर घर से किसी बहाने बाहर निकल जाओ और फिर मौज करो।कुमार का कहना है कि आजकल के लड़के-लड़की प्यार का मतलब नहीं समझते और वे इसके नाम पर सिर्फ अश्लीलता को बढ़ावा देते हैं।बहरहाल, किरोड़ीमल कॉलेज के छात्र सुकेश जैन इससे सहमत नहीं हैं। वह कहते हैं कि जो कल था वह आज नहीं है, जो आज है वह कल नहीं होगा। समय के साथ बहुत कुछ बदल रहा है। इसे स्वीकार करना चाहिए। पहले के समय में और आज के समय में अंतर है। वैलेंटाइन डे को 'बेशर्मी' से जोड़ना बिल्कुल गलत है। युवाओं को भी उनकी मर्जी से जीने की आजादी है।दिल्ली जल बोर्ड की सेवानिवृत्त कर्मचारी जानकी देवी का कहना है कि उनके दिनों में वैलेंटाइन डे जैसा कुछ नहीं था, लेकिन आजकल अखबारों और टेलीविजन ने इस दिन के बारे में दिखा-दिखा कच्र बच्चों को ''बर्बाद'' कर दिया है।राष्ट्रीय राजधानी स्थित एक फ्रिज कंपनी में काम करने वाले गंगेश राय कहते हैं कि प्यार के नाम पर नौजवान पीढ़ी भटकती जा रही है। उसे भले बुरे का ज्ञान नहीं रहा।उन्होंने कहा कि वे रोजाना पलवल और दिल्ली के बीच लोकल ट्रेन से सफर करते हैं और इस दौरान ट्रेन की खिड़की से उन्हें निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन के पास स्थित इंद्रप्रस्थ पार्क में लड़के-लड़कियां सरेआम अश्लील हरकतें करते दिखते हैं। यह बहुत ही शर्मनाक दृश्य होता है। ऐसे में यदि आपके साथ बहन-बेटी भी सवार हो तो बहुत बुरा लगता है।उन्होंने कहा कि यह आए रोज की बात है। ऐसी चीजों पर रोक लगनी चाहिए।यह पूछे जाने पर कि क्या हिन्दू संगठन वैलेंटाइन डे का विरोध कर सही काम करते हैं, गंगेश ने कहा कि किसी को भी कानून अपने हाथ में नहीं लेना चाहिए और न ही किसी के साथ जोर जबर्दस्ती होनी चाहिए। हां सरकार को इस बारे में कुछ न कुछ जरूर करना चाहिए कि पार्को जैसे सार्वजनिक स्थलों पर लोग प्यार के नाम पर आपत्तिजनक हरकतें न करें।उधर सुकेश कहते हैं कि कुछ लोग आपत्तिनजक हरकतें करें तो सभी को इस दायरे में लाना सही नहीं है। आपत्तिजनक हरकतें करने वाले वैलेंटाइन डे की राह क्यों देखेंगे, वह तो साल में कभी भी, कहीं भी ऐसा कर सकते हैं। वैलेंटाइन डे एक प्यार के खूबसूरत अहसास से जुड़ा हुआ है और इस अहसास को बनाए रखना चाहिए।सेवानिवृत्त सूबेदार हनुमंत प्रसाद का कहना है कि प्यार में कोई बुराई नहीं, लेकिन वैलेंटाइन डे के नाम पर आज जो कुछ हो रहा है, वह सही नहीं है। इससे सामाजिक मान-मार्यादाएं कलंकित हो रही हैं।

शेर की बिल्ली हो गयी ?

राहूल गांधी को काले झंडे दिखाने का आदेश शिवसेना सुप्रिमों बाल ठाकरे ने दिया और उनके आदेश को सर माथे पर लेकर शिवसैनिक गली कुंचे से निकलकर काले झंडे दिखाने के लिए कुछ हद तक सामने भी आए लेकिन बाईस हजार पुलिस कर्मीयों ने उनके प्लॅन को फेल कर दिया, उनके आंदोलन की हवा ही निकाल डाली। साथ ही कांग्रेस कार्यकर्तोओं ने रास्ते पर उतर कर उनका सामना करने के लिए कमर कस ली । शायद ये नजारा मुंबई हमले के वक्त देखने मिलता तो आज नजारा ही कुछ और होता ना ही मुंबई पुलिस के जाबांज शहीद होते और नाही एन.एस.जी के कमांडो जिन्हे मुंबई के लिए निकलने की आज्ञा हमले के दस घंटे बाद दी गयी। राहूल गांधी के मुंबई के सफल दौरे के बाद कार्यकारी अध्यक्ष ने आनन फानन में प्रेस कॉन्फरन्स लेकर ये साबित कर दिया की राहूल गांधी को उनके वजह से हवाई यात्रा छोडकर रेल का सफर तय करना पडा हालांकि सच्चाई सभी को पता है। शाहरूख खान के बयान पर शिवसेना ने आक्रमक रूख अख्तियार तो कर लिया लेकिन विरोध फिल्म को करे या शाहरूख को इस संभ्रम में शिवसेना गुमराह हो गयी । हालांकि खेल और कला को इस विवाद में लाना समझदारी नही थी। लेकिन मुंबई आतंकवादी हमले के बाद पाकिस्तानी साजीश से सारा देश आहत हूआ है, ऐसें में पाकिस्तान खिलाडीयों को आयपीएल में खिलाने का विरोध शिवसेना ने जताया। राज्यसरकार ने शाहरूख को सुरक्षा देने का वादा किया । मुंबई लौटकर शाहरूख ने बालासाहब से मिलने का इच्छा भी जाहीर की और अपने बयान पर कायम रहे। शिवसेना का यह मिशन भी फेल हो गया। ऑस्ट्रेलिया में भारतीयो पर हो रहे वंशवाद के हमले की वजह से कई भारतीय छात्रों पर जान पर बन आयी है। हमले अभीभी बरकरार है, केंद्र सरकार ऑस्ट्रेलियन सरकार से चर्चा करके भारतीयों पर हो रहे हमले को रोकने की कोशीश में है। क्या प्रांतवाद ने वहां भी अपने जडे जमा ली है। स्थानिक ऑस्ट्रेलियन भारतीयों के आने से असुरक्षीत है ।शिवसेना ने इस बात का विरोध जताते हूए ऑस्ट्रेलियन खिलाडीयों को मुंबई में आने से विरोध जताया है। लेकीन केंद्रीय कृषीमंत्री श्री शरद पवार बीच बचाव करने आगे आये है। शिवसेना प्रमुख से चर्चा करके इस बात पर हल निकालने की पहल की ही। देश में मंहगाई बढती जा रही है, शक्कर की मिठास मुंह से निकल गयी हा वहीं रा्ष्ट्रवादी के मॅग्झीन में यह कहा गया है की शक्कर नही खाने से कोई मर नही जाएगा। डव साबून का और शक्कर का दाम एक जैसा है, लेकिन उसके बारे में कोई आवाज नही उठाता । रा्ष्ट्रवादी को यह शायद पता होगा की दो वक्त की रोटी का जुगाड करनेवाला इंसान डव साबून या इत्त्तर का इस्तेमाल नही करता। चाय में शक्कर की मिठास तो जाती रही अब रंग भी फिका हो गया। लेकिन खेल से सभी को प्यार है चाहे वो ऑस्ट्रेलियन खिलाडी हो या पाकिस्तानी सभी को पसंद किया जाता है। पवार जी ने कल महाराष्ट्र के औरंगाबाद में कहा था की अब बालासाहब की उम्र हो चुकी है, विरोध करके क्या करेंगें बच्चों को खेलने दिजीए, मै उनसे मिलकर उनको समझाउंगा। चर्चा के बाद अब शिवसेना यह तय करेगी की खिलाडीयों को विरोध करना है या नही। यह आंदोलन भी खटाई में जाता रहा। क्या शिवसेना का पावर कम हो रहा है, या मराठी –गैर मराठी विवाद का विभाजन ठाकरे परिवार में होने की वजह से शिवसेना की राह पर चले या मनसे का हात थामे इस दुविधा में मराठी माणुस है। कौन दिलवाएगा भूमिपुत्रों को न्याय।भूमिपुत्रों को न्याय दिलवाने के लिए साठ साल पहले जो शिवसेना शेर की तरह दहाडा करती थी अब वो मिमियाने लगी है। बॅकफूट पर जाने लगी है। बालासाहब ठाकरे की फिरसे एन्ट्री ने मुंबई महापालिका चुनाव मे बाजी मार ली क्या फिरसे उन्हे सक्रिय राजनिती में उतरकर दहाडना होगा। शिवसेना का वजूद दिखाना होगा।

जहांपना तुस्सी ग्रेट हो.............

युवराज राहूल गांधी मुंबई आए, हर चुनौती का सामना करते हुए मुंबई का दौरा सफल करके दिखा भी दिया। शिवसेना के आंदोलन की हवा निकालते हुए उन्होने यह साबित कर दिया की मुंबई सभी की है, हर भारतीय मुंबई ही नही बल्की देश में कहीं भी आ जा सकता है। युवराज देश का भविष्य ही नही बल्की वर्तमान भी है, हर चुनौती का सामना बडे ही सादगी से करके हर भारतीय नौजवान ही नही बल्की बुजुर्गो के गले का तावीज बन चुके है। राहूल गांघी की सादगी और जमीन से जुडे रहने की वजह से सभी उनके कायल है। सबसे एहम बात तो यह है की दलितों के साथ हो रहे भेदभाव को उन्होने काफी हदतक मिटाने की कोशीश की है। हर नौजवान युवराज के नक्शे कदम पर चलना चाहता होगा, उनकी तरह सोचने, करने की कोशीश करना चाहता होगा।
लेकीन मुंबई दौरे का एक दुसरा पहलू भी सामने आया है जो सोचने पर मजबूर भी करता है। राहूल गांघी ने बिहार के लोगों के सामने यह कहकर उनका दिल जीत लिया की मुंबई हमले के दौरान यु.पी –बिहार से आए एन एस.जी कमांडो ने मुंबईकरों को आतंकीयों से बचाया है। राहूल गांधी कल का नेतृत्व है, सभी के दिल में उनके लिए काफी इज्जत है, लेकिन उनके इस बयान से शायद देश के जवानों में भी मराठी – गैर मराठी की भावना ना पैदा हो जाए। आम मुंबईकरों को या महाराष्ट्रीयन लोगों के मन में ये कतई भेदभाव नही है। राजनितीक पार्टीयों ने मराठी गैर मराठीयों का विवाद खडा कर दिया है। विवाद खडा करने में सबसे एहम भुमिका निभा रही है मिडीया। बाल की खाल निकालकर, बयानों को बढा चढाकर,तोड मरोडकर पेश किया जा रहा है। लोगों में गलत मेसेज दे रहे है। कल की ही बात ले लो राहूल गांधी का रेल सफर, मुंबई दौरा कामयाब होने के बाद मिडीया ने बाल ठाकरे, राज ठाकरे, उध्दव ठाकरे को मुहं चिढाना शुरू कर दिया, उन्हे उकसाने की कोशीश की। राहूल गांधी आम आदमी से जुडे रहने की कोशीश में रहते है, देश का भविष्य पढे लिखे काबील नौजवानों के हाथों सौपना चाहते है। भारतभर में घुम कर नौजवानों में नया जोश पैदा कर रहै है। मुबंई दौरे के वक्त राहूल गांधी ने हवाई यात्रा छोडकर आम आदमी के साथ जाना पसंद किया ये बात काफी अच्छी लगी , उन्होने रेल यात्रीयों के परेशानीयों के बारे में भी पुछा। सभी लोग राहूल गांधी को देखने के लिए , उनसे हाथ मिलाने के लिए काफी उत्साहीत भी थे। कमांडो के
घेरे में रहने के बावजूद भी वे आम आदमी से रूबरू हुए। शिवसैनिक जहां काले झडें दिखा रहे थे वहां आम मुंबईकर चाहे वे मराठी हो या गैर मराठी सभी ने राहूल गांधी का स्वागत किया। लेकिन राहूल गांधी की दो बातें बिल्कूल भी अच्छी नही लगी। राहूल गांधी न अंधेरी से दादर और दादर से घाटकोपर तक का सफर रेल से तय किया उस बात का स्वागत लेकिन टिकट के कतार में खडे रहकर टिकट लेना और एटीएम से पैसे निकालना ये बात कुछ रास नही आयी। भले ही उन्होने ये साबित करने की कोशीश की हो की मै भी आप लोगों में से एक हूं।

आम मुंबईकर की परेशानी कुछ अलग है, उसके पास यह सोचने के लिए वक्त नही की मराठी गैर मराठी के विवाद में शामिल हो या नही। मुंबईकर की दिन की शुरूवात भागते दौडते होती है और समाप्ती भी। समय पर ट्रेन या बस लेकर अपने गंतव्य स्थान पर पहूंचने के लिए उसे कितनी जद्दोजहद करनी पडती है यह पीडा मुंबईकरों के अलावा कोई नही जान सकता। आबादी बढ रही है लेकीन खाने पीने की चिजे, आवाजाही के साधन रहने की जगह कम होती जा रही है। चिजों के दाम केवल बढते जा रहे है उत्पादन नहीं। हर इंसान मुंबई को केवल पैसे कमाने का जरीया समझने लगा है, बस आओ और पैसा कमाओ। लेकीन सुंदर मुंबई स्वच्छ मुंबई का नक्शा घिनौना होता जा रहा है, रहने के लिए कहींपर भी झु्गीय्यां बनती जा रही है। क्या पालिका प्रशासन को इस बात का पता नही चलता की अवैध झुग्गीयों का निर्माण हो रहा है। सबकुछ पता रहता है, स्थानिक पार्षदों को झु्ग्गी दादाओं से रिश्वत जो मिलती है और फिर सरकार को भी तो वोट चाहिए तो झु्ग्गीयों को सुरक्षा देना लाजमी होता जा रहा है। जगहों के बढते दामों ने आम आदमी का घर का सपना तोडा ही नही बल्की चकनाचुर कर दिया है, मुंबई का मिल मजदूर शहर से बाहर हो गया है। कई मिल बंद हो चुकी है और तो कईयों को आग के हवाले कर दिया है। मिल मजदूरों के बच्चे आज या तो क्रिमीनल बन गये है, या तो कहीं दिहाडी करने पर मजबूर है। बरसों से उनको मिल रहा है तो केवल आश्वासन मिल की जगह घर और बच्चों को नौकरी। सालों तो बित गये अब और कितने साल बिताने होंगे शायद भगवान ही जाने।

देश सभी का है किसी को भी कहीं भी जाने का अधिकार है, कमाने खाने का अधिकार है, लेकिन जिस तरह दिल्ली , कोलकाता ,मुबंई आर्थीक आकर्षण का केंद्र बने हुए है उसी तरह अगर अन्य शहरों या गावों का विकास हो, रोजगार के साधन निर्मीण किये जाए तो स्थानिक लोगों को रोजगार के लिए कहीं और भटकने की जरूरत नही पडेगी। भाषावाद या प्रांतवाद का विवाद ही खत्म हो जाएगा। और ये तब मुमकिन होगा जब हमारे देश के नेता चाहें तो करोंडो की संपत्ती जुटाने की होड में लगे नेता अगर आम आदमी की सेवा करना चाहता है तो पहले उसे सम्मान के साथ जीने के साधन मुहय्या कराये। नेताओं की चापलुसी करके उनके जुते उठाकर मंत्रीपद नही मिलेगा। सम्मान के साथ अपना कर्तव्य निभाए। आवभगत जरूर किजीए लेकिन उस आवभत से आपके समाज का सम्मान हो ना ही छिं थू........।
युवा वर्ग को यह विश्वास है देश का भविष्य युवराज राहूल गांधी देश का विकास जरूर करेंगे, जहां न भाषावाद होगा ना ही प्रांतवाद। मुंबई के सफल दौरा करके उन्होने ये साबित कर दिया, जहांपना तु्स्सी ग्रेट हो..........।

Shiv Sena Poster

महाराष्ट्र सरकार के विरुद्ध मुम्बई की आर्थर रोड पर लगा ये पोस्टर शिवसैनिकों ने लगाया है जिसमें आम जनता की सुरक्षा को लेकर सवाल उठाए गए हैं। पोस्टर में बताया गया है कि मुम्बई की सारी पुलिस शाहरुख और कसाब की सुरक्षा में लगी है और आम आदमी असुरक्षित है। महिलाएं असुरक्षित हैं घर असुरक्षित हैं। और नेता दिल्ली में हाईकमान का हुक्म बजाने में लगे हैं। कार्टून के जरिए कटाक्ष करते हुए मुंबई की ला एंड आर्डर व्यवस्था में हो रही चूक के पीछे सरकार को जिम्मेदार बता रही है .. शिवसेना ने अब सरकार के उपर प्रहार तेज कर दिए है.. इसी के साल शुक्रवार को माई नेम इज़ ख़ान के सम्भावित रिलीज़ पर से भी पर्दा नहीं उठ पाया है।