Friday, February 12, 2010

जहांपना तुस्सी ग्रेट हो.............

युवराज राहूल गांधी मुंबई आए, हर चुनौती का सामना करते हुए मुंबई का दौरा सफल करके दिखा भी दिया। शिवसेना के आंदोलन की हवा निकालते हुए उन्होने यह साबित कर दिया की मुंबई सभी की है, हर भारतीय मुंबई ही नही बल्की देश में कहीं भी आ जा सकता है। युवराज देश का भविष्य ही नही बल्की वर्तमान भी है, हर चुनौती का सामना बडे ही सादगी से करके हर भारतीय नौजवान ही नही बल्की बुजुर्गो के गले का तावीज बन चुके है। राहूल गांघी की सादगी और जमीन से जुडे रहने की वजह से सभी उनके कायल है। सबसे एहम बात तो यह है की दलितों के साथ हो रहे भेदभाव को उन्होने काफी हदतक मिटाने की कोशीश की है। हर नौजवान युवराज के नक्शे कदम पर चलना चाहता होगा, उनकी तरह सोचने, करने की कोशीश करना चाहता होगा।
लेकीन मुंबई दौरे का एक दुसरा पहलू भी सामने आया है जो सोचने पर मजबूर भी करता है। राहूल गांघी ने बिहार के लोगों के सामने यह कहकर उनका दिल जीत लिया की मुंबई हमले के दौरान यु.पी –बिहार से आए एन एस.जी कमांडो ने मुंबईकरों को आतंकीयों से बचाया है। राहूल गांधी कल का नेतृत्व है, सभी के दिल में उनके लिए काफी इज्जत है, लेकिन उनके इस बयान से शायद देश के जवानों में भी मराठी – गैर मराठी की भावना ना पैदा हो जाए। आम मुंबईकरों को या महाराष्ट्रीयन लोगों के मन में ये कतई भेदभाव नही है। राजनितीक पार्टीयों ने मराठी गैर मराठीयों का विवाद खडा कर दिया है। विवाद खडा करने में सबसे एहम भुमिका निभा रही है मिडीया। बाल की खाल निकालकर, बयानों को बढा चढाकर,तोड मरोडकर पेश किया जा रहा है। लोगों में गलत मेसेज दे रहे है। कल की ही बात ले लो राहूल गांधी का रेल सफर, मुंबई दौरा कामयाब होने के बाद मिडीया ने बाल ठाकरे, राज ठाकरे, उध्दव ठाकरे को मुहं चिढाना शुरू कर दिया, उन्हे उकसाने की कोशीश की। राहूल गांधी आम आदमी से जुडे रहने की कोशीश में रहते है, देश का भविष्य पढे लिखे काबील नौजवानों के हाथों सौपना चाहते है। भारतभर में घुम कर नौजवानों में नया जोश पैदा कर रहै है। मुबंई दौरे के वक्त राहूल गांधी ने हवाई यात्रा छोडकर आम आदमी के साथ जाना पसंद किया ये बात काफी अच्छी लगी , उन्होने रेल यात्रीयों के परेशानीयों के बारे में भी पुछा। सभी लोग राहूल गांधी को देखने के लिए , उनसे हाथ मिलाने के लिए काफी उत्साहीत भी थे। कमांडो के
घेरे में रहने के बावजूद भी वे आम आदमी से रूबरू हुए। शिवसैनिक जहां काले झडें दिखा रहे थे वहां आम मुंबईकर चाहे वे मराठी हो या गैर मराठी सभी ने राहूल गांधी का स्वागत किया। लेकिन राहूल गांधी की दो बातें बिल्कूल भी अच्छी नही लगी। राहूल गांधी न अंधेरी से दादर और दादर से घाटकोपर तक का सफर रेल से तय किया उस बात का स्वागत लेकिन टिकट के कतार में खडे रहकर टिकट लेना और एटीएम से पैसे निकालना ये बात कुछ रास नही आयी। भले ही उन्होने ये साबित करने की कोशीश की हो की मै भी आप लोगों में से एक हूं।

आम मुंबईकर की परेशानी कुछ अलग है, उसके पास यह सोचने के लिए वक्त नही की मराठी गैर मराठी के विवाद में शामिल हो या नही। मुंबईकर की दिन की शुरूवात भागते दौडते होती है और समाप्ती भी। समय पर ट्रेन या बस लेकर अपने गंतव्य स्थान पर पहूंचने के लिए उसे कितनी जद्दोजहद करनी पडती है यह पीडा मुंबईकरों के अलावा कोई नही जान सकता। आबादी बढ रही है लेकीन खाने पीने की चिजे, आवाजाही के साधन रहने की जगह कम होती जा रही है। चिजों के दाम केवल बढते जा रहे है उत्पादन नहीं। हर इंसान मुंबई को केवल पैसे कमाने का जरीया समझने लगा है, बस आओ और पैसा कमाओ। लेकीन सुंदर मुंबई स्वच्छ मुंबई का नक्शा घिनौना होता जा रहा है, रहने के लिए कहींपर भी झु्गीय्यां बनती जा रही है। क्या पालिका प्रशासन को इस बात का पता नही चलता की अवैध झुग्गीयों का निर्माण हो रहा है। सबकुछ पता रहता है, स्थानिक पार्षदों को झु्ग्गी दादाओं से रिश्वत जो मिलती है और फिर सरकार को भी तो वोट चाहिए तो झु्ग्गीयों को सुरक्षा देना लाजमी होता जा रहा है। जगहों के बढते दामों ने आम आदमी का घर का सपना तोडा ही नही बल्की चकनाचुर कर दिया है, मुंबई का मिल मजदूर शहर से बाहर हो गया है। कई मिल बंद हो चुकी है और तो कईयों को आग के हवाले कर दिया है। मिल मजदूरों के बच्चे आज या तो क्रिमीनल बन गये है, या तो कहीं दिहाडी करने पर मजबूर है। बरसों से उनको मिल रहा है तो केवल आश्वासन मिल की जगह घर और बच्चों को नौकरी। सालों तो बित गये अब और कितने साल बिताने होंगे शायद भगवान ही जाने।

देश सभी का है किसी को भी कहीं भी जाने का अधिकार है, कमाने खाने का अधिकार है, लेकिन जिस तरह दिल्ली , कोलकाता ,मुबंई आर्थीक आकर्षण का केंद्र बने हुए है उसी तरह अगर अन्य शहरों या गावों का विकास हो, रोजगार के साधन निर्मीण किये जाए तो स्थानिक लोगों को रोजगार के लिए कहीं और भटकने की जरूरत नही पडेगी। भाषावाद या प्रांतवाद का विवाद ही खत्म हो जाएगा। और ये तब मुमकिन होगा जब हमारे देश के नेता चाहें तो करोंडो की संपत्ती जुटाने की होड में लगे नेता अगर आम आदमी की सेवा करना चाहता है तो पहले उसे सम्मान के साथ जीने के साधन मुहय्या कराये। नेताओं की चापलुसी करके उनके जुते उठाकर मंत्रीपद नही मिलेगा। सम्मान के साथ अपना कर्तव्य निभाए। आवभगत जरूर किजीए लेकिन उस आवभत से आपके समाज का सम्मान हो ना ही छिं थू........।
युवा वर्ग को यह विश्वास है देश का भविष्य युवराज राहूल गांधी देश का विकास जरूर करेंगे, जहां न भाषावाद होगा ना ही प्रांतवाद। मुंबई के सफल दौरा करके उन्होने ये साबित कर दिया, जहांपना तु्स्सी ग्रेट हो..........।

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