Saturday, February 13, 2010

मैं शिखर पर हूँ




घाटियों में खोजिए मत


मैं शिखर पर हूँ
धुएँ की पगडंडियों को


बहुत पीछे छोड़ आया


हूँरोशनी के राजपथ पर


गीत का रथ मोड़ आया हूँ


मैं नहीं भटकारहा चलता निरंतर हूँ।
लाल-पीली उठीं लपटें


लग रही है आग जंगल में


आरियाँ उगने लगी हैं


आम , बरगद, और पीपल में


मैं झुलसती रेत पर


रसवंत निर्झर हूँ
साँझ ढलते पश्चिमी नभ के


जलधि में डूब जाऊँगा सूर्य हूँ


मैं जुगनुओं कीचित्र लिपि में जगमगाऊँगा अनकही


अभिव्यक्ति का मैं स्वर अनश्वर हूँ

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