Saturday, February 13, 2010

मैं शिखर पर हूँ




घाटियों में खोजिए मत


मैं शिखर पर हूँ
धुएँ की पगडंडियों को


बहुत पीछे छोड़ आया


हूँरोशनी के राजपथ पर


गीत का रथ मोड़ आया हूँ


मैं नहीं भटकारहा चलता निरंतर हूँ।
लाल-पीली उठीं लपटें


लग रही है आग जंगल में


आरियाँ उगने लगी हैं


आम , बरगद, और पीपल में


मैं झुलसती रेत पर


रसवंत निर्झर हूँ
साँझ ढलते पश्चिमी नभ के


जलधि में डूब जाऊँगा सूर्य हूँ


मैं जुगनुओं कीचित्र लिपि में जगमगाऊँगा अनकही


अभिव्यक्ति का मैं स्वर अनश्वर हूँ

Friday, February 12, 2010

मुझे कुछ करना है ।


करना है तो करना है,
बढ़ना है, भिड़ना है, अड़ना पड़े तो अड़ना है,
करना है तो करना है,
गिरना है फिर सम्भलना है,
कुछ कर गुज़रना है, यही तमन्ना है,
करना है तो करना है,
धड़कना है, गरजना है, बरसना है
लड़ना पड़े तो लड़ना है,
करना है तो करना है,
करना है तो करना है,
क्या नहीं हो सकता अगर आदमी ठान ले तो,
अगर सोच ले तो कि करना है तो करना है,
फिर कोई सागर गहरा नहीं,
कोई पर्वत ऊंचा नहीं,
कोई चुनौती बड़ी नहीं,
यही जज़्बा, यही मिज़ाज,
यही सोच लेकर आया है,
हर ख़बर की तह तक जाने का जज़्बा,
उसे हर क़ीमत पर पहुंचाने का जज़्बा,
क्योंकि......करना है तो करना है !

वेलेंटाइन डे और ये महंगाई




इन दिनों बाजार जाकर काफी शुकून मिल रहा हैं , ऐसा लगता है मानों कि किसी बगीचे में आ गये हों , चारों ओर गुलाबी खुशबू फैली है । तरह तरह से सजे गुलाब के गुलदस्तों को देख प्रसन्नता होती है , वैसे तो आम दिनों में इन गुलाबों की कीमत पांच रूपये के आस पास होती है पर इस खास मौके पर ये ३० रूपये से लेकर १००० रूपये तक के हैं । महंगाई ने पहले ही दाल रोटी को हमसे दूर कर दिया है ऐसे में भला गुलशन में गुलाब कैसे गुलजार हो सकता है।

बुजुर्गो के लिए 'बेशर्मी' से बढ़कर कुछ नहीं है वैलेंटाइन डे

वैलेंटाइन डे को चाहे प्रेम का दिन कहा जाए या फिर कुछ और, लेकिन बुजुर्ग इसे 'बेशर्मी' का दिन मानते हैं। उनका कहना है कि देश की नौजवान पीढ़ी इससे ''बर्बाद'' हो रही है, लेकिन युवा इससे बिल्कुल सहमत नहीं हैं और उनका मानना है कि समय के साथ बदलना चाहिए।
दिल्ली के एक सरकारी स्कूल से बतौर प्रधानाचार्य सेवानिवृत्त 70 वर्षीय रमेश कुमार का कहना है कि वैलेंटाइन डे का नाम भी 'बेहूदा' है और यह 'बेशर्मी' का दिन है।उन्होंने कहा कि प्यार का मतलब सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शन करना नहीं है और न ही इसका मतलब यह है कि इस दिन घरवालों को धोखा देकर घर से किसी बहाने बाहर निकल जाओ और फिर मौज करो।कुमार का कहना है कि आजकल के लड़के-लड़की प्यार का मतलब नहीं समझते और वे इसके नाम पर सिर्फ अश्लीलता को बढ़ावा देते हैं।बहरहाल, किरोड़ीमल कॉलेज के छात्र सुकेश जैन इससे सहमत नहीं हैं। वह कहते हैं कि जो कल था वह आज नहीं है, जो आज है वह कल नहीं होगा। समय के साथ बहुत कुछ बदल रहा है। इसे स्वीकार करना चाहिए। पहले के समय में और आज के समय में अंतर है। वैलेंटाइन डे को 'बेशर्मी' से जोड़ना बिल्कुल गलत है। युवाओं को भी उनकी मर्जी से जीने की आजादी है।दिल्ली जल बोर्ड की सेवानिवृत्त कर्मचारी जानकी देवी का कहना है कि उनके दिनों में वैलेंटाइन डे जैसा कुछ नहीं था, लेकिन आजकल अखबारों और टेलीविजन ने इस दिन के बारे में दिखा-दिखा कच्र बच्चों को ''बर्बाद'' कर दिया है।राष्ट्रीय राजधानी स्थित एक फ्रिज कंपनी में काम करने वाले गंगेश राय कहते हैं कि प्यार के नाम पर नौजवान पीढ़ी भटकती जा रही है। उसे भले बुरे का ज्ञान नहीं रहा।उन्होंने कहा कि वे रोजाना पलवल और दिल्ली के बीच लोकल ट्रेन से सफर करते हैं और इस दौरान ट्रेन की खिड़की से उन्हें निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन के पास स्थित इंद्रप्रस्थ पार्क में लड़के-लड़कियां सरेआम अश्लील हरकतें करते दिखते हैं। यह बहुत ही शर्मनाक दृश्य होता है। ऐसे में यदि आपके साथ बहन-बेटी भी सवार हो तो बहुत बुरा लगता है।उन्होंने कहा कि यह आए रोज की बात है। ऐसी चीजों पर रोक लगनी चाहिए।यह पूछे जाने पर कि क्या हिन्दू संगठन वैलेंटाइन डे का विरोध कर सही काम करते हैं, गंगेश ने कहा कि किसी को भी कानून अपने हाथ में नहीं लेना चाहिए और न ही किसी के साथ जोर जबर्दस्ती होनी चाहिए। हां सरकार को इस बारे में कुछ न कुछ जरूर करना चाहिए कि पार्को जैसे सार्वजनिक स्थलों पर लोग प्यार के नाम पर आपत्तिजनक हरकतें न करें।उधर सुकेश कहते हैं कि कुछ लोग आपत्तिनजक हरकतें करें तो सभी को इस दायरे में लाना सही नहीं है। आपत्तिजनक हरकतें करने वाले वैलेंटाइन डे की राह क्यों देखेंगे, वह तो साल में कभी भी, कहीं भी ऐसा कर सकते हैं। वैलेंटाइन डे एक प्यार के खूबसूरत अहसास से जुड़ा हुआ है और इस अहसास को बनाए रखना चाहिए।सेवानिवृत्त सूबेदार हनुमंत प्रसाद का कहना है कि प्यार में कोई बुराई नहीं, लेकिन वैलेंटाइन डे के नाम पर आज जो कुछ हो रहा है, वह सही नहीं है। इससे सामाजिक मान-मार्यादाएं कलंकित हो रही हैं।

शेर की बिल्ली हो गयी ?

राहूल गांधी को काले झंडे दिखाने का आदेश शिवसेना सुप्रिमों बाल ठाकरे ने दिया और उनके आदेश को सर माथे पर लेकर शिवसैनिक गली कुंचे से निकलकर काले झंडे दिखाने के लिए कुछ हद तक सामने भी आए लेकिन बाईस हजार पुलिस कर्मीयों ने उनके प्लॅन को फेल कर दिया, उनके आंदोलन की हवा ही निकाल डाली। साथ ही कांग्रेस कार्यकर्तोओं ने रास्ते पर उतर कर उनका सामना करने के लिए कमर कस ली । शायद ये नजारा मुंबई हमले के वक्त देखने मिलता तो आज नजारा ही कुछ और होता ना ही मुंबई पुलिस के जाबांज शहीद होते और नाही एन.एस.जी के कमांडो जिन्हे मुंबई के लिए निकलने की आज्ञा हमले के दस घंटे बाद दी गयी। राहूल गांधी के मुंबई के सफल दौरे के बाद कार्यकारी अध्यक्ष ने आनन फानन में प्रेस कॉन्फरन्स लेकर ये साबित कर दिया की राहूल गांधी को उनके वजह से हवाई यात्रा छोडकर रेल का सफर तय करना पडा हालांकि सच्चाई सभी को पता है। शाहरूख खान के बयान पर शिवसेना ने आक्रमक रूख अख्तियार तो कर लिया लेकिन विरोध फिल्म को करे या शाहरूख को इस संभ्रम में शिवसेना गुमराह हो गयी । हालांकि खेल और कला को इस विवाद में लाना समझदारी नही थी। लेकिन मुंबई आतंकवादी हमले के बाद पाकिस्तानी साजीश से सारा देश आहत हूआ है, ऐसें में पाकिस्तान खिलाडीयों को आयपीएल में खिलाने का विरोध शिवसेना ने जताया। राज्यसरकार ने शाहरूख को सुरक्षा देने का वादा किया । मुंबई लौटकर शाहरूख ने बालासाहब से मिलने का इच्छा भी जाहीर की और अपने बयान पर कायम रहे। शिवसेना का यह मिशन भी फेल हो गया। ऑस्ट्रेलिया में भारतीयो पर हो रहे वंशवाद के हमले की वजह से कई भारतीय छात्रों पर जान पर बन आयी है। हमले अभीभी बरकरार है, केंद्र सरकार ऑस्ट्रेलियन सरकार से चर्चा करके भारतीयों पर हो रहे हमले को रोकने की कोशीश में है। क्या प्रांतवाद ने वहां भी अपने जडे जमा ली है। स्थानिक ऑस्ट्रेलियन भारतीयों के आने से असुरक्षीत है ।शिवसेना ने इस बात का विरोध जताते हूए ऑस्ट्रेलियन खिलाडीयों को मुंबई में आने से विरोध जताया है। लेकीन केंद्रीय कृषीमंत्री श्री शरद पवार बीच बचाव करने आगे आये है। शिवसेना प्रमुख से चर्चा करके इस बात पर हल निकालने की पहल की ही। देश में मंहगाई बढती जा रही है, शक्कर की मिठास मुंह से निकल गयी हा वहीं रा्ष्ट्रवादी के मॅग्झीन में यह कहा गया है की शक्कर नही खाने से कोई मर नही जाएगा। डव साबून का और शक्कर का दाम एक जैसा है, लेकिन उसके बारे में कोई आवाज नही उठाता । रा्ष्ट्रवादी को यह शायद पता होगा की दो वक्त की रोटी का जुगाड करनेवाला इंसान डव साबून या इत्त्तर का इस्तेमाल नही करता। चाय में शक्कर की मिठास तो जाती रही अब रंग भी फिका हो गया। लेकिन खेल से सभी को प्यार है चाहे वो ऑस्ट्रेलियन खिलाडी हो या पाकिस्तानी सभी को पसंद किया जाता है। पवार जी ने कल महाराष्ट्र के औरंगाबाद में कहा था की अब बालासाहब की उम्र हो चुकी है, विरोध करके क्या करेंगें बच्चों को खेलने दिजीए, मै उनसे मिलकर उनको समझाउंगा। चर्चा के बाद अब शिवसेना यह तय करेगी की खिलाडीयों को विरोध करना है या नही। यह आंदोलन भी खटाई में जाता रहा। क्या शिवसेना का पावर कम हो रहा है, या मराठी –गैर मराठी विवाद का विभाजन ठाकरे परिवार में होने की वजह से शिवसेना की राह पर चले या मनसे का हात थामे इस दुविधा में मराठी माणुस है। कौन दिलवाएगा भूमिपुत्रों को न्याय।भूमिपुत्रों को न्याय दिलवाने के लिए साठ साल पहले जो शिवसेना शेर की तरह दहाडा करती थी अब वो मिमियाने लगी है। बॅकफूट पर जाने लगी है। बालासाहब ठाकरे की फिरसे एन्ट्री ने मुंबई महापालिका चुनाव मे बाजी मार ली क्या फिरसे उन्हे सक्रिय राजनिती में उतरकर दहाडना होगा। शिवसेना का वजूद दिखाना होगा।

जहांपना तुस्सी ग्रेट हो.............

युवराज राहूल गांधी मुंबई आए, हर चुनौती का सामना करते हुए मुंबई का दौरा सफल करके दिखा भी दिया। शिवसेना के आंदोलन की हवा निकालते हुए उन्होने यह साबित कर दिया की मुंबई सभी की है, हर भारतीय मुंबई ही नही बल्की देश में कहीं भी आ जा सकता है। युवराज देश का भविष्य ही नही बल्की वर्तमान भी है, हर चुनौती का सामना बडे ही सादगी से करके हर भारतीय नौजवान ही नही बल्की बुजुर्गो के गले का तावीज बन चुके है। राहूल गांघी की सादगी और जमीन से जुडे रहने की वजह से सभी उनके कायल है। सबसे एहम बात तो यह है की दलितों के साथ हो रहे भेदभाव को उन्होने काफी हदतक मिटाने की कोशीश की है। हर नौजवान युवराज के नक्शे कदम पर चलना चाहता होगा, उनकी तरह सोचने, करने की कोशीश करना चाहता होगा।
लेकीन मुंबई दौरे का एक दुसरा पहलू भी सामने आया है जो सोचने पर मजबूर भी करता है। राहूल गांघी ने बिहार के लोगों के सामने यह कहकर उनका दिल जीत लिया की मुंबई हमले के दौरान यु.पी –बिहार से आए एन एस.जी कमांडो ने मुंबईकरों को आतंकीयों से बचाया है। राहूल गांधी कल का नेतृत्व है, सभी के दिल में उनके लिए काफी इज्जत है, लेकिन उनके इस बयान से शायद देश के जवानों में भी मराठी – गैर मराठी की भावना ना पैदा हो जाए। आम मुंबईकरों को या महाराष्ट्रीयन लोगों के मन में ये कतई भेदभाव नही है। राजनितीक पार्टीयों ने मराठी गैर मराठीयों का विवाद खडा कर दिया है। विवाद खडा करने में सबसे एहम भुमिका निभा रही है मिडीया। बाल की खाल निकालकर, बयानों को बढा चढाकर,तोड मरोडकर पेश किया जा रहा है। लोगों में गलत मेसेज दे रहे है। कल की ही बात ले लो राहूल गांधी का रेल सफर, मुंबई दौरा कामयाब होने के बाद मिडीया ने बाल ठाकरे, राज ठाकरे, उध्दव ठाकरे को मुहं चिढाना शुरू कर दिया, उन्हे उकसाने की कोशीश की। राहूल गांधी आम आदमी से जुडे रहने की कोशीश में रहते है, देश का भविष्य पढे लिखे काबील नौजवानों के हाथों सौपना चाहते है। भारतभर में घुम कर नौजवानों में नया जोश पैदा कर रहै है। मुबंई दौरे के वक्त राहूल गांधी ने हवाई यात्रा छोडकर आम आदमी के साथ जाना पसंद किया ये बात काफी अच्छी लगी , उन्होने रेल यात्रीयों के परेशानीयों के बारे में भी पुछा। सभी लोग राहूल गांधी को देखने के लिए , उनसे हाथ मिलाने के लिए काफी उत्साहीत भी थे। कमांडो के
घेरे में रहने के बावजूद भी वे आम आदमी से रूबरू हुए। शिवसैनिक जहां काले झडें दिखा रहे थे वहां आम मुंबईकर चाहे वे मराठी हो या गैर मराठी सभी ने राहूल गांधी का स्वागत किया। लेकिन राहूल गांधी की दो बातें बिल्कूल भी अच्छी नही लगी। राहूल गांधी न अंधेरी से दादर और दादर से घाटकोपर तक का सफर रेल से तय किया उस बात का स्वागत लेकिन टिकट के कतार में खडे रहकर टिकट लेना और एटीएम से पैसे निकालना ये बात कुछ रास नही आयी। भले ही उन्होने ये साबित करने की कोशीश की हो की मै भी आप लोगों में से एक हूं।

आम मुंबईकर की परेशानी कुछ अलग है, उसके पास यह सोचने के लिए वक्त नही की मराठी गैर मराठी के विवाद में शामिल हो या नही। मुंबईकर की दिन की शुरूवात भागते दौडते होती है और समाप्ती भी। समय पर ट्रेन या बस लेकर अपने गंतव्य स्थान पर पहूंचने के लिए उसे कितनी जद्दोजहद करनी पडती है यह पीडा मुंबईकरों के अलावा कोई नही जान सकता। आबादी बढ रही है लेकीन खाने पीने की चिजे, आवाजाही के साधन रहने की जगह कम होती जा रही है। चिजों के दाम केवल बढते जा रहे है उत्पादन नहीं। हर इंसान मुंबई को केवल पैसे कमाने का जरीया समझने लगा है, बस आओ और पैसा कमाओ। लेकीन सुंदर मुंबई स्वच्छ मुंबई का नक्शा घिनौना होता जा रहा है, रहने के लिए कहींपर भी झु्गीय्यां बनती जा रही है। क्या पालिका प्रशासन को इस बात का पता नही चलता की अवैध झुग्गीयों का निर्माण हो रहा है। सबकुछ पता रहता है, स्थानिक पार्षदों को झु्ग्गी दादाओं से रिश्वत जो मिलती है और फिर सरकार को भी तो वोट चाहिए तो झु्ग्गीयों को सुरक्षा देना लाजमी होता जा रहा है। जगहों के बढते दामों ने आम आदमी का घर का सपना तोडा ही नही बल्की चकनाचुर कर दिया है, मुंबई का मिल मजदूर शहर से बाहर हो गया है। कई मिल बंद हो चुकी है और तो कईयों को आग के हवाले कर दिया है। मिल मजदूरों के बच्चे आज या तो क्रिमीनल बन गये है, या तो कहीं दिहाडी करने पर मजबूर है। बरसों से उनको मिल रहा है तो केवल आश्वासन मिल की जगह घर और बच्चों को नौकरी। सालों तो बित गये अब और कितने साल बिताने होंगे शायद भगवान ही जाने।

देश सभी का है किसी को भी कहीं भी जाने का अधिकार है, कमाने खाने का अधिकार है, लेकिन जिस तरह दिल्ली , कोलकाता ,मुबंई आर्थीक आकर्षण का केंद्र बने हुए है उसी तरह अगर अन्य शहरों या गावों का विकास हो, रोजगार के साधन निर्मीण किये जाए तो स्थानिक लोगों को रोजगार के लिए कहीं और भटकने की जरूरत नही पडेगी। भाषावाद या प्रांतवाद का विवाद ही खत्म हो जाएगा। और ये तब मुमकिन होगा जब हमारे देश के नेता चाहें तो करोंडो की संपत्ती जुटाने की होड में लगे नेता अगर आम आदमी की सेवा करना चाहता है तो पहले उसे सम्मान के साथ जीने के साधन मुहय्या कराये। नेताओं की चापलुसी करके उनके जुते उठाकर मंत्रीपद नही मिलेगा। सम्मान के साथ अपना कर्तव्य निभाए। आवभगत जरूर किजीए लेकिन उस आवभत से आपके समाज का सम्मान हो ना ही छिं थू........।
युवा वर्ग को यह विश्वास है देश का भविष्य युवराज राहूल गांधी देश का विकास जरूर करेंगे, जहां न भाषावाद होगा ना ही प्रांतवाद। मुंबई के सफल दौरा करके उन्होने ये साबित कर दिया, जहांपना तु्स्सी ग्रेट हो..........।

Shiv Sena Poster

महाराष्ट्र सरकार के विरुद्ध मुम्बई की आर्थर रोड पर लगा ये पोस्टर शिवसैनिकों ने लगाया है जिसमें आम जनता की सुरक्षा को लेकर सवाल उठाए गए हैं। पोस्टर में बताया गया है कि मुम्बई की सारी पुलिस शाहरुख और कसाब की सुरक्षा में लगी है और आम आदमी असुरक्षित है। महिलाएं असुरक्षित हैं घर असुरक्षित हैं। और नेता दिल्ली में हाईकमान का हुक्म बजाने में लगे हैं। कार्टून के जरिए कटाक्ष करते हुए मुंबई की ला एंड आर्डर व्यवस्था में हो रही चूक के पीछे सरकार को जिम्मेदार बता रही है .. शिवसेना ने अब सरकार के उपर प्रहार तेज कर दिए है.. इसी के साल शुक्रवार को माई नेम इज़ ख़ान के सम्भावित रिलीज़ पर से भी पर्दा नहीं उठ पाया है।