Friday, July 16, 2010

A Box Full of Kisses

The story goes that some time ago, a man punished his 3-year-old daughter for wasting a roll of gold wrapping paper. Money was tight and he became infuriated when the child tried to decorate a box to put under the Christmas tree. Nevertheless, the little girl brought the gift to her father the next morning and said, "This is for you, Daddy." The man was embarrassed by his earlier overreaction, but his anger flared again when he found out the box was empty. He yelled at her, stating, "Don't you know, when you give someone a present, there is supposed to be something inside? The little girl looked up at him with tears in her eyes and cried, "Oh, Daddy, it's not empty at all. I blew kisses into the box. They're all for you, Daddy."The father was crushed. He put his arms around his little girl, and he begged for her forgiveness. Only a short time later, an accident took the life of the child. It is also told that her father kept that gold box by his bed for many years and, whenever he was discouraged, he would take out an imaginary kiss and remember the love of the child who had put it there.
In a very real sense, each one of us, as humans beings, have been given a gold container filled with unconditional love and kisses... from our children, family members, friends, and God. There is simply no other possession, anyone could hold, more precious than this.

Sand and Stone



A story tells that two friends were walking through the desert. During some point of the journey they had an argument, and one friend slapped the other one in the face. The one who got slapped was hurt, but without saying anything, wrote in the sand: "TODAY MY BEST FRIEND SLAPPED ME IN THE FACE."
They kept on walking until they found an oasis, where they decided to take a bath. The one, who had been slapped, got stuck in the mire and started drowning, but the friend saved him. After the friend recovered from the near drowning, he wrote on a stone: "TODAY MY BEST FRIEND SAVED MY LIFE."
The friend who had slapped and saved his best friend asked him, "After I hurt you, you wrote in the sand and now, you write on a stone, why?"
The other friend replied: "When someone hurts us, we should write it down in sand where winds of forgiveness can erase it away. But, when someone does something good for us, we must engrave it in stone where no wind can ever erase it."
LEARN TO WRITE YOUR HURTS IN THE SAND, AND TO CARVE YOUR BENEFITS IN STONE

Wednesday, July 14, 2010

क्या पत्रकार होना गुनाह है?


कुछ प्रश्न बार बार मन में उथल-पुथल मचाये हुए है। जबाब ढुढने पर भी नहीं मिल रहा। पत्रकारिता को समाज सेवा और देशभक्ति का प्रतीक माना जाना अब बन्द हो गया है। अपवादों को छोड़ दे तो पत्रकार का मतलब लंपट, दारूबाज, ब्लैकमेलर और न जाने क्या क्या हो गया है पर क्या वास्तव में ऐसा ही है। हम जिस आवाम के लिए जिम्मेवार है उनकी नज़र में भी हमारी छवि खराब हो चुकी है।
कुछ बात है जो उद्वेलित कर रही है। आखिर पत्रकारिता बदनाम हो चुका है या ``बद´´, यह सबसे बड़ा सवाल है।
सबसे पहले तो यह कि आज जब कहीं किसी पत्रकार की हत्या होती है या फिर उनके साथ मार पीट होती है तब मिडिया खामोश रहती है या फिर औपचारिकता पूरी करती है। एक माडल की हत्या पर चिल्लाने वाली मिडिया आखिर क्यों अपने साथी की मौत पर चुप रहती है कोई तो कारण हो । गांव में कहावत है की कुत्ता भी कुत्ते की मौत पर रोता है पर हमें क्या हुआ है। क्या हम इतने बुरे है। यानि अपने भी हमें बुरा ही मानते है।
इसको लेकर मैं अपना कुछ अनुभव बांटना चाहता हूं चूंकी मैं भी मिडिया जगत का एक अदना सिपाही हूं और हमें भी यह सब देख कर दर्द होता है।
मैं अभी हाल में ही अपने यहां हुए लूट और दो भाईयों को गोली मारे जाने की घटना का जिक्र करना चाहूंगा। सात जुलाई को करीब नौ बजे इस घटना की खबर मिलती है और एक मिनट में मैं अपने एक साथी दीपक के साथ आनन फानन में कैमरा लेकर घटनास्थल की ओर भागा और बिना यह जानेे की अपराधी घटनास्थल से भाग गए हैं या नहीं, मैं वहां पहूंच गया। वह जगह नगर की एक सुनसान गली थी और धुप्प अंधेरा भी था पर किसी बात की परवाह उस समय नहीं थी। लगा जैसे खुन में जुनून सा दौर गया हो, प्रलय आने की तरह। सबसे पहले चैनल को फोन पर घटना की खबर दी उसके बाद घटना स्थल पर कवरेज करने लगा। खुन के छिंटे, गोलियों का खोखा.... । सब कुछ कवर करने के बाद भागते हुए अस्पताल, फिर पिड़ित का घर। इतना सबकुछ करते करते करीब 11 बज गए। सुनसान बाजार पर मैं अपने कार्यालय में बैठा विजुअल कैपचर करने लगा और उसे भेजने के लिए एफटीपी पर डाल दिया। हमारे यहां ब्राडबैण्ड नहीं है इस लिए रिम के मॉडम से भेजने में समय अधिक लगता है। 12 बजे हमारे एक मित्र ने विजुअल की मांग की और हमलोग एक दुसरे से विजुअल का अदान-प्रदान करते रहते है सो मैं देने के लिए तैयार हो गया और वह मेरे यहां से 20 किलोमिटर दूर होने के बाद भी रात में ही विजुअल लेने आ गया।
चार साल पहले के पंचायत चुनाव का जिक्र भी मैं यहां करना चाहूंगा। चुनाव के दिन हमलोगों के लिए चुनौती का दिन होता है। उस समय मैं सिर्फ अखबार के लिए ही काम करता था। बरबीघा का तेउस पंचायत में बड़ी घटना के घटने की संभावना प्रबल थी क्योंकि यहां से अपराधी सरगना और मोकामा विधायक अनन्त सिंह के मनेरे भाई त्रिशुलधारी सिंह तथा उनके रिश्तेदार चुनाव लड़ रहे थे और पिछले चुनाव में अनन्त सिंह ने पुुरा गांव में घेर कर बुथ लुट लिया था। उनका मुकाबल कुख्यात शूटर नागा सिंह के साले शंभू सिंह से था जिनकी पत्नी चुनाव मैदान में थी। हमलोग बिना इसकी परवाह किए सबसे पहले सुदूर काशीबीघा गांव पहूंच गए जहां हंगामें की सबसे ज्यादा संभावना थी। हमलोग जैसे ही बुथ पर पहूंचे वहां बूथ लूटने का काम हो रहा था। मेरे साथ ईटीवी रिपोर्टर अजीत थे। हमलोगों के पहूंचने से पहले ही वे लोग भाग खड़े हुए और पुलिस कें जवान लोगों को लाइन में लगाने का काम करने लगे। हमलोगों ने बिना भय के विजुअल बनाया और फोटो खिंची। तभी वहां त्रिशुलधारी सिंह का बेटा राजीव आया और धमकी भरे लहजे में यह सब नहीं करने की सलाह दी। पर वही जुनून हमलोग कहां रूकने वाले थे। दिन भर चिलचिलाती धूप में हमलोग मोटरसाईकिल पर धुमते रहे। आज भी याद है उस दिन जब मैं घर पहूंचा पत्नी चैंककर पुछती है क्या हुआ चेहरा काला हो गया है तब मैंं धूप की वजह से मेरा चेहरा और हाथ पूरी तरह सेे काला हो गया था। खैर दो बजे के आस पास हम लोग न्यूज और फोटो पहूंचाने के लिए तीस किलोमिटर दूर नालन्दा जिला के बिहारशरीफ जा रहा था कि सबसे पहले मुझे ही यह खबर मिलती है कि गोवाचक में नरसंहार हो गया है और करीब सात लोग मारे गए है। लगा जैसे खून में उबाल आ गया। तत्काल हमलोग गोवाचक की ओर भागे। नजारा देख कलेजा मुंह में आ गया। फिर पुलिस को इसकी सूचना दी और अपने साथियों को भी दी। पता नही दरिन्दगी के उस मंजर को कैसे कवर किया। भूखे प्यसे और बदहवास। न्यूज कवर कर बिहारशरीफ गया वहां से न्यूज लगाने के बाद फिर गोवाचक आए और रात में 11 बजे घर लौटा।
कई बाकया ऐसा है जो रोज रोज होता है, क्या क्या लिखूं, उबाउ हो जाएगा।
पर ऐसा सिर्फ मेरे साथ ही नहीं होता मेरे साथी भी ऐसा ही करते है और हां एक बात मैं कह दूं की यह सब मैं कम से कम मैं पैसों के लिए नहीं था क्यूंकि तब मैं ``आज´´ अखबार के लिए रिर्पोटिंग करता था उसमें पत्रकारों को फैक्स तक का खर्चा नहीं दिया जाता और मैं दाबे से कह सकता हूं कि आठ साल के पत्रकारिता के लाइफ मे एक आदमी उंगली उठाकर नहीं कह सकता कि मैंने पत्रकारिता के नाम पर पैसे लिए हों।
तब सोंचता हूं कि हमलोग ऐसा क्यों करते है। यह जुनून किस लिए। क्या मिलता है।
जान को जोखिम में डाल अपने और अपने बच्चों के भविष्य को दांव पर लगा कर पत्रकारिता के नाम पर इस जुनून से क्या मिल रहा है।
बस कुलदीप नैयर के आलेख में उद्धिZत उस वाक्य से हौसला मिलता है जिसमे उन्होंने कहा था कि `` पत्रकारिता पेशा नहीं है और यह पैसा कमाने का माध्यम भी नहीं, यह देशसेवा है, देशप्रेम है, समाजसेवा है। पैसा कमाना हो तो कोई और माध्यम चुनों पत्रकारिता क्यों।.......
...बस एक दर्द था जिसे उगल दिया है ................................